सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

कवि की अंतिम इच्छा




निकास की देहरी पर बैठी,
रात का,
अलसाई सुबह की प्रथम प्रहर से,
'आलिंगन'
...निषिद्ध हो !

ये,
प्रेमाभिव्यक्ति का समय...
कतई नहीं है .

ये समय बिलकुल ठीक है...

दिलों में उठते कारखानी - धुओं को,
बुझाने वालों,
या...
उसे फूंक फूंक कर,
आँखें धुआंधार करने वालों,
में से,
किसी एक को चुनने का,

भीड़ का हिस्सा बन के,
सामूहिक क्रंदन करने का.
ताकि,
बेशक आवाज़ नहीं.
कम से कम...
शोर तो सुनाई दें,

...ये समय है लहलहाते गाँव के पत्तों का सच जानने का...
टिड्डियाँ हों...
...ताकि कोई 'एक' न दोषी ठहराया जाये .

और अगर व्यक्त होना अश्लीलता है,
तो ये समय है अंतरात्मा के नग्न होने का,
यदि विरोध युद्ध है,
तो ठीक इस समय...
पर कुतर दिए जाने चाहिए पवित्र से पवित्र समर्थन के,

नपुंसकों द्वारा,
सहमति के नाम पे किये गए,
सामूहिक बलात्कार,
और...
बिल्लियों और गीदड़ों की,
पृष्ठ भूमि पर खड़ा,
पुरुष रहित समाजशास्त्र,
यदि शब्दों से और अभिव्यक्ति से कम 'गालियाँ' हैं तो...

कवि तू दोषी है,
अपराध के लिए,
दंड वो देंगे...
जिनके प्रति सरोकार था तेरा.

और उन सरोकारों के एवज़  में,
क़त्ल हो जाने से पहले तक का...
ये समय तेरा है.
...कविता का समय?
मौत का...
और ठीक उसके बाद.




बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

नो हायर रेजल्यूशन अवेलेबल

खोजा गूगल में,
फिर गूगल इमेज़ेस,

अब तुझे ,
ढूँढ रहा हूँ...
गूगल मेप में.


बर्लिन की दिवार,
बाबरी मस्ज़िद का गुम्बद,
बुरका ओढ़े बुद्ध,
किसी 'कथित' तानाशाह की...
कथित मूर्त आत्मश्लाघा
कोई तेल का कुआँ,
मोहनजोदड़ो...
पाकिस्तान वाला भी.
हूवर डेम से पहले की 'लॉस वेगास बाजियाँ',
वो दो गगनचुम्बी इमारतें...
जिसकी सबसे ऊंची मंजिल से...
सभ्यता पूरी दिखती है...
लेकिन...
साफ़ नहीं.

ओ बेवकूफ इंसान,
जामवंत-हीन.
मैं तुझे ढूँढ रहा हूँ,
अब तक...

भूकंप बिन बताए आते हैं,
इसलिए तू भी पूजने योग्य है.

साले !!
अपना कॉपी राईट  करा ले,
कल तुझ जैसे बनना चाहेंगे कुछ,
और तब...
इश्वर से ज़्यादा क्लिक्स,
तेरे हों.

अबे आदमी !!
तेरी इमेज़ को,
इन्लार्ज़ करा के,
प्रिंट स्क्रीन लेना चाहता हूँ,
तेरी वर्चुअल आरती करना चाहता हूँ,
या कोई 'जागर'
सर को गोल गोल घुमा के...

क्रेडिट कार्ड से तुझे भोग लगाऊंगा,
ऑनलाइन.

मैं रिफ्रेश का बटन दबाता हूँ,
पांच बार बैक करके.

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

संवेदनहीनता

वो,
अपने सर को खुजाती.
बारी बारी
अपने दोनों हाथों से.

उसके मुख से,
सुनी थी भद्दी गालियाँ,
शायद,
उनकी कोई...
'सामायिक सार्थकता'
हो?

गोद में पकड़े...
अबोध जीवन,
नंगा अबोध जीवन

नहीं,
नग्न कहाँ था वो?
पहन रक्खे थे,
उसने,
काले कपड़े.

इसमें...
और,
महाराष्ट्र के चुनाव में,
क्या सम्बन्ध हो सकता है?

नही सोचता हूँ मैं.

पकड़ा देता हूँ उसे,
दस का नोट.

ये 'गाँधी' भी,
उससे खर्च हो जाने हैं.
हेतु,
एक चाय,
और बासी बंद.

उस फ्लाई ओवर से,
गुज़र जाता हूँ.

...एक
...नही दो आवाजें,
रुदन की.

एक आवाज,
जो अब तक पकी नहीं थी...

मैं?
वापस?
नहीं.
इंडियन आइडल ?
और फिर,
पिज्जा ?

वहीँ से कामना,
........
हे इश्वर...
न हो ये !

...कल के अख़बार में भी,

कुछ न पढूंगा....
पेज थ्री के सिवा.

फिर से,
झुठला दूँगा सत्य.