रात शब्द वाकई डरवाना है,
जिसकी परिभाषा में,
बिल्लियाँ लड़ने के लिए बदनाम हैं,
और शियार रोने के लिए बने हैं.
इसमें 'रहस्य' और 'जंगल' के प्रेम सम्बन्ध सी वर्जना है
लेकिन फिर भी मैं इसे आपसे बांटना पसंद नहीं करता.
उफ्फ्फ !
माफ़ कीजिये पर...
आपके 'हस्तक्षेप' का शोर सन्नाटे से ज्यादा खतरनाक है.
स्लीपिंग पिल्स ३ गली छोड़ के मिलती है.
देशी शराब ४...
और मौत...
...टक्कर* पे.
मेरे एक अज़ीज़ मित्र 'ग़ालिब' ने तिलमिला कर गजलें-गाना बंद कर दिया है.
"दिल्ली में रहें गायेंगे क्या?"
(इस दर्द को ग़ज़ल की भी पनाह नहीं मिलती.)
यीट्स बावनवें पन्ने में खाली हुई डिस्प्रिन के स्ट्रिप्स का बुकमार्क लगा के सो गया है.
ताजमहल का नक्शा खो जाने की स्थिति में सनद रहे शिल्पकार के हाथ कटे हुए हैं.
नींद से पहले के 'दो घंटों के उमस भरे रंग' मोनालिसा की प्रेतात्मा को जीवंत कर उठे हैं.
अमीर खुसरो का ध्यान भंग हो रहा है...
"चल खुसरो घर आपने रैन 'नहीं' इस देश."
ऐसा ही रहा तो पानीपत की लड़ाई में 'लो-ब्लड-प्रेशर' जीत जायेगा.
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*टक्कर = दिल्ली में टी-पॉइंट को टक्कर भी कहते हैं.
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