12-08-2011
तुमको (तुम्हारे लिए नहीं) कुछ प्रेम कवितायें लिखनी थीं, पर जो मेरी मौलिक होनी थीं वो तो पहले ही लिखी जा चुकी हैं."तुमको चाँद सा कहना, तुमको चाँद कहना, तुमको चाँद ना कहना, चाँद को तुमसा कहना, चाँद को तुम कहना, तुमको चाँद से बढ़कर कहना..."
अच्छा क्या ये भी कहा जा चुका है की "चाँद बस तुमसे थोड़ा ही ज़्यादा खूबसूरत है?"
"मुझे भूल जाना, मुझे याद रखना, मैं वापिस आऊंगा, मैं वापिस नहीं आऊंगा, तुम बुलाओगी तो मैं सात समन्दर पार से भी आ जाऊँगा, तुम बुलाओगी तो भी मैं नहीं आऊंगा."
मुझे तो ये भी लगता है कि शायद ये भी पहले कोई कह चुका है "बुला के देखना पर पहले भूला के देखना."...हो सकता है, हो सकता है क्या यकीनन कई नई सारी बातें प्रेम में कहनी बाकी हैं अभी. पर 'प्रेम' ना बदला है ना बदलेगा, प्रेम वही है...
वही...
...वो, पुराना वाला !
कितनी अच्छी बात है ना?
मैं नहीं जानता कि 'आई लव यू' को कितने अलग तरीकों से, कितनी अलग भाषाओं कितनी अलग बोलियों में कहा जा सकता है. एक गाना था, फ़िर एक फोरवरडेड मेल भी . और ये दोनों बातें तुम्हें पहली बार 'आई लव यू' कहने से पहले की हैं.
लेकिन जैसे वो 'एफ. आई. आर.' धारावाहिक की लड़की यूनिफ़ॉर्म में ही सबसे बेस्ट लगती है, वैसे ही (मुझे) आई लव यू, 'आई लव यू' में ही बेस्ट लगता है.
आरती का मतलब जानती हो? पूरी पूजा में जो भी त्रुटियाँ रह जाती हैं,उनका भू.चू.ले.दे., पूजा की कोई विधी ना जानूं जैसा कुछ.. आई लव यू दरअसल नायिका की आरती है.
तुम कहती हो कवि होकर प्रेम कवितायें तो छोड़ो प्रेम के दो शब्द नहीं लिख सकते?
ओ पागली ! ये प्रेम करने की उम्र है, लिखने की नहीं. उसके लिए 'खुशवन्त सिंह', 'गुलज़ार' और 'जावेद अख्तर' हैं ना...
कई लेखक बड़े 'जेनुएन' होते हैं, अपनी आप बीती अपनी मनः स्थिति लिखते हैं, अपना जिया लिखते हैं, पर कुछ लेखक मुखौटा धारी होते हैं, नकली, दोगले मेरी तरह. अगर मैं लेखक हूँ तो. (वैसे तुम कहती हो मुझे 'लेखक' मैं तो मानता भी नहीं.)
अभी प्रेम कवितायें लिखने से इसलिए भी कतराता हूँ कि अगर आपनी कविता की नायिका के होठों, केशों या बाहों से थोड़ी इधर उधर भटका तो लोगों को लगेगा (मुझे लगेगा कि लोगों को लग रहा है, क्यूंकि ये सच है/होगा) कि वो नायिका तुम हो.
तुम कहती हो तुम नहीं होगी तो मैं प्रेम कवितायें अच्छी लिखूंगा. मैं कहता हूँ, "ग़लत" !
क्यूंकि जब तुम नहीं होगी तब भी प्रेम तो होगा ही. हाँ एक वक्त ऐसा आएगा कि मैं प्रेम से विरक्त हो जाऊँगा(उस विरक्ति के लिए बुढ़ापा जरूरी नहीं बता दूं तुम्हें). तब शायद....
...यानी जब भी तुम्हें लगे कि मैं प्रेम कवितायें अच्छी लिख रहा हूँ तो जान जाना जानाँ की मेरे जीवन में अब प्रेम कहीं नहीं है.
अभी तो मुझे क्रांतियों के बारे में लिखने दो, क्यूंकि मुझे रोड क्रॉस करने का फोबिया है.
अभी मुझे उस गरीब भिखारी बच्चे के बारे में लिख लेने दो, क्यूंकि मैं उसके लिए कुछ नहीं कर सकता. (घृणित है पर लेट मी एक्सेप्ट 'करना भी नहीं चाहता.')
अभी मुझे आत्महत्या का मनोविज्ञान पे 'थोथा चना' लेख लिख लेने दो, लिख लेने दो मुझे 'मोक्ष प्राप्ति' कि विधियां, क्यूंकि मुझे तैंतीस करोड़ योनियों में भटकना ही है.
लिख लेने दो मुझे इतिहास क्यूंकि वो बदला नहीं जा सकता, लिख लेने दो मुझे भविष्य क्यूंकि वो यक़ीनन वैसा नहीं होगा जैसा मैं लिखूंगा. मुझसे वर्तमान लिखने को मत कहो प्लीज़...
जी लेने दो मुझे वर्तमान, कर लेने दो मुझे प्रेम.
___________________________________
पुनःश्च आई लव यू !
13-08-2011
तुम्हारा थक जाना,मेरी हार में हुए सत्यापित हस्ताक्षर हैं.
हार जाने,
और हार स्वीकार कर लेने में,
तुम्हारे थक जाने का अंतर है.
14-08-2011
इनपे कुछ और भी लिखा जा सकता था,
बिल्कुल अलहदा...
राशन का सामान,
महीने का हिसाब,
और लिखी जा सकती थी इनमें कविता.
15-05-2011
गल्तियाँ तुम्हारी होतीं तो तुम्हें अपनाना,इक एहसास-ए-सुकून-ए-एहसान होता,
पर मेरा कितना बड़ा दिल है देखो,
मैं अपनी गल्तियों के बावजूद,
तुम्हें अपनाना चाहता हूँ.
बॉल इज़ इन यौर कोर्ट नाऊ...
16-05-2011
अच्छा साहित्य 'आपदाओं' की नहीं, 'संगठित आपदाओं' की देन है, क्यूंकि वो 'सर्वजन दुखाय' है. बिहार एक संपन्न राज्य है जिसमें गरीब लोग रहते हैं, उसी तरह ये समय सृष्टि के प्रारब्ध से अब तक का सबसे शान्त समय है जिसमें कुछ छोटे छोटे एक्सट्रीम विभत्स पल हैं, सृष्टि के प्रारब्ध से अब तक के...
और उनकी संख्या लाखों करोड़ों में है,
'फूट डालो राज्य करो' का ग्राफ देखा है?
दो में बाटों, चार में, सोलह, चौसठ.... ....लाख, करोड़ और...
...राज करना और आसान...
और आसान.
आश्चर्य जनक रूप से फूट भी दुखों में पड़ी है, और राज भी दुःख कर रहे हैं.
दर्द, दुःख,अवसाद सबको है किन्तु एकाकी....
साहित्य की पेंसिलीन, 'दंगों', 'क्रांतियों' और 'वैश्विक-परिवर्तनों' के लिए है.
इसलिए अभी तो 'डिस्प्रीन','क्रोसीन','इनो','पुदिन-हरा' जैसे विचार,लेख,कहानियाँ,कवितायें हैं बस.
हाँ, कुछ रूमानी गीतों,गजलों की 'स्लीपिंग-पिल्स' भी.
ये सब जरूरी हैं, ये सब समय की मांग हैं, 'मुन्नी' , 'शीला' और 'रज़ियाओं' के 'पेन किलर' की तो सबसे ज़्यादा.
अभी आवश्यक है बहुत कुछ लिखा जाना, आईटमाइज्ड पर टेलर मेड.
स्पेक्ट्रम विशाल है अवसादों का, इसलिए कोम्पेक्ट कम.
वोल्यूम इज़ इन्वर्सली प्रपोश्न्ल टू डेंसिटी.
किसी एक्सटेंडेड वीकेंड में मिनियापोलिस या बाल्टीमोर के अपने सब-अर्ब घर के बैकयार्ड में चिकन बार्बैक्यु करते इन्सान के दुःख किसी सामान्य परिस्थिति में ठीक उतने ही लगते हैं जितने रोहतक बाई पास के किसी ढाबे में बैठे, बारह घंटे ट्रक चलाने के बाद बुनी हुई चारपाई में 'नारंगी' पीते, मुर्गा फाड़ते इन्सान के.
ठीक बराबर, दशमलव के चार स्थानों तक शुद्ध नापने के बाद भी. पर इकाई अलग है और इसलिए रिलेट नहीं हो पाते. दुखों की इक्वेशन में एक दूसरे को एक्स आउट नहीं कर सकते.
इसलिए जब कहानी लिखने की सोचता हूँ तो फंस जाता हूँ, परेशानियों के पंचतंत्र में, अवसादों के अलिफ़ लैला में.
और अन्त में अपने अवसादों के बारे में लिखकर सो जाता हूँ या सोने की कोशिश करता हूँ. हाँ हाँ में मतलबी हो गया हूँ, पर मतलबी होकर भी खुश नहीं हूँ, भगवान कसम.
बहरहाल....
"सर्वे भवन्तु सुखिना."