मंगलवार, 15 मई 2012

Random Thoughts Continued

नहीं देखीं कई दिनों से तितलियाँ,
पर सुना है अंधे भी प्रेम कर सकते हैं.
अपने होने पर शर्म तो कभी महसूस नहीं हुई,
क्यूंकि प्रकृति ने ही चुना था मेरे होने को.
सृष्टि ने ही मुहर लगायी थी वर्तमान की मुझमें.
किन्तु फिर भी...
क्षमा प्रार्थी हूँ सारी सृष्टि से,
अपने किये के लिए....
एक छोटे से सुख के लिए,
अनंत काल का दुःख, दुःख नहीं लगता....
...लम्बा इंतज़ार सच को अनंत से गुना करता है.
इश्वर कोई नहीं है...
...बस आप हैं.
नहीं ! आप इश्वर नहीं हैं, बस आप 'आप' हैं.
हर पीड़ा में आप हैं,
हर सुख में आप हैं,
हर पीड़ा की मुक्ति के प्रयास में आप हैं...
हर सुख की तलाश में आप हैं.
सो,
आइये इश्वर को नकारें...
...जब तक की वो हमें मिल नहीं जाता.
आइये प्रेम स्वीकारें...
...जब तक की वो हमसे खो नहीं जाता.
आइये मृत्यु नकारें...
...जब तक की वो हो नहीं जाती.
(वैसे मृत्यु कभी नहीं होती, कौन मरा है भला  आज तक?)
तो आइये होना स्वीकारें...
..कम से कम वर्तमान तक.