तेरा लम्स ऐ तवील कि जैसे कैफ़े कैपचीनो
ऊपरी तौर पर
ज़ाहिर है जो उसका
वो कितना फैनिल
कितना मखमली
यूँ कि होठों से लगे पहली बार वो चॉकलेटी स्वाद कभी
तो यकीं ही न हो
कुछ छुआ भी था
क्या कुछ हुआ भी था?
जुबां को अपने ही होठों से फ़िराकर
उस छुअन की तसल्ली करता रहा था दफ़'तन
कुछ नहीं और कुछ-कुछ के बीच का कुछ
एक जाज़िब सा तसव्वुफ़
तेरा लम्स ऐ तवील
और उसकी पिन्हाँ गर्माहट
जुबां जला लिया करता था
उस न'ईम त'अज्जुब से कितनी ही दफ़े
जब भी होती थी
पहली बार में कहाँ नुमायाँ होती थी वो
तेरा लम्स ऐ तवील
जिसका ज़ायका उसके मीठेपन से न था कभी
उम्मीदों की कड़वी तासीर हमेशा रही थी
बहुत देर तक
आज तक चिपकी हुई है रूह से जो
तेरा लम्स ऐ तवील
बेशक माज़ी की नीम बेहोशी का चस्मक
मगर जिसने ख्वाबों के हवाले किया हर बार
बस इख़्तियार नहीं रहता
इसलिए, उसे जज़्ब कर लिया
आख़िरी घूँट तक
वरना यूँ तो न था कि तिश्नगी कमतर हुई हो उससे
तेरा लम्स ऐ तवील
कि जैसे कैफ़े कैपचीनो
ऊपरी तौर पर
ज़ाहिर है जो उसका
वो कितना फैनिल
कितना मखमली
यूँ कि होठों से लगे पहली बार वो चॉकलेटी स्वाद कभी
तो यकीं ही न हो
कुछ छुआ भी था
क्या कुछ हुआ भी था?
जुबां को अपने ही होठों से फ़िराकर
उस छुअन की तसल्ली करता रहा था दफ़'तन
कुछ नहीं और कुछ-कुछ के बीच का कुछ
एक जाज़िब सा तसव्वुफ़
तेरा लम्स ऐ तवील
और उसकी पिन्हाँ गर्माहट
जुबां जला लिया करता था
उस न'ईम त'अज्जुब से कितनी ही दफ़े
जब भी होती थी
पहली बार में कहाँ नुमायाँ होती थी वो
तेरा लम्स ऐ तवील
जिसका ज़ायका उसके मीठेपन से न था कभी
उम्मीदों की कड़वी तासीर हमेशा रही थी
बहुत देर तक
आज तक चिपकी हुई है रूह से जो
तेरा लम्स ऐ तवील
बेशक माज़ी की नीम बेहोशी का चस्मक
मगर जिसने ख्वाबों के हवाले किया हर बार
बस इख़्तियार नहीं रहता
इसलिए, उसे जज़्ब कर लिया
आख़िरी घूँट तक
वरना यूँ तो न था कि तिश्नगी कमतर हुई हो उससे
तेरा लम्स ऐ तवील
कि जैसे कैफ़े कैपचीनो
लम्स-ऐ-तवील: दीर्घ स्पर्श, तिश्नगी: प्यास, तसव्वुफ़: mystical, त'अज्जुब: आश्चर्य, न'ईम: आनंद, चस्मक: Disillusion, जाज़िब-मनमोहक
दिल को छूनेवाली बेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंGood informative information
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